वृद्धाश्रम

भारतीय संस्कृति में संयुक्त परिवार की कल्पना की गई है। इसमें एक ही छत के नीचे तीन पीढ़ियाँ एक साथ प्रेम, सौहार्द्र और सद्‍भाव के साथ रहती हैं। घर-परिवार के कामों में बुजुर्गों का सलाह-मशविरा लिया जाता है। माता-पिता को सामाजिक और पारिवारिक व्यवस्था का स्तंभ माना जाता है। लेकिन वर्तमान समय की सचाई है कि “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसि” वाले देश में माता-पिता को विशेष रूप से बुजुर्गों को तिरस्कृत, उपेक्षित और अपमानित किया जाने लगा है। उन्हें यह अहसास कराया जाता है कि परिवार के अहम् फैसलों में उनकी कोई भूमिका नहीं है। चुपचाप घर में पड़े रहें और दो रोटियाँ मिल रही हैं, खाते रहें। उन्हें घर में अलग-थलग कर दिया जाता है। उनकी अनुभवसिक्त बातों पर दकियानूसी होने का लेबल चस्पा कर दिया जाता है। आधुनिकता के इस दौर में अपने ढंग से जीने की ललक और व्यक्तिगत जिंदगी आजादी से गुजारने की चाह में संवेदहीन हुए लोग बुजुर्गों की भावनाओं को समझ पाने में असमर्थ हो गए हैं। इसके अतिरिक्त अधिकांश नवयुवक अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए अपने पैतृक घर से दूर चले जाते हैं। भौतिक दूरियाँ बढ़ने के साथ-साथ दिलों की दूरियाँ भी बढ़ती जा रही हैं। 
इस स्थिति को देखते हुए वात्सल्य आश्रम में इन बुजुर्गों के आश्रय की व्यवस्था की जा रही है | आश्रम में स्वामी जी के सानिध्य में अध्यात्मिक वातावरण एवं प्राकृतिक स्वच्छ परिवेश इन बुजुर्गों के जीवन में एक नयी रौशनी लाये ऐसा हमारा प्रयास है | इस पुनीत कार्य में जो भी मित्र जुड़ना चाहें वे निःसंकोच संपर्क कर सकते हैं |

अपना सहयोग कृपया इस खाता नं. में भेजें -

वात्सल्य आश्रम 
बैंक  - यूको बैंक 
शाखा-सुजातगंज कानपूर
खाता संख्या - 17450110008485

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