Tuesday 18 July 2017

घनघोर अंधेरा छाये जब..

*घनघोर अंधेरा छाये जब,*
*कोई राह नज़र ना आये जब,*
*कोई तुमको फिर बहकाये जब,*
*इस बात पे थोड़ी देर तलक,*
*तुम आँखें अपनी बंद करना,*
*और अंतरमन की सुन लेना,*
*मुमकिन है हम-तुम झूठ कहें,*
*पर अंतरमन सच बोलेगा..!!*

*जब लम्हा-लम्हा 'आरी' हो,*
*और ग़म खुशियों पे भारी हो,*
*दिल मुश्किल में जब पड़ जाये,*
*कोई तीर सोच की 'अड़' जाये,*
*तुम आँखें अपनी बंद करना*
*और अंतरमन की सुन लेना,*
*मुमकिन है हम-तुम झूठ कहें,*
*पर अंतरमन सच बोलेगा..!!*

*जब सच-झूठ में फर्क ना हो,*
*जब गलत-सही में घिर जाओ,*
*तुम नज़र में अपनी गिर जाओ,* 
*इस बात पे थोड़ी देर तलक,*
*तुम आँखें अपनी बंद करना,*
*और अंतरमन की सुन लेना,*
*मुमकिन है हम-तुम झूठ कहें,*
*पर अंतरमन सच बोलेगा..!!*

*ये जीवन एक छाया है,*
*दुख, दर्द, मुसीबत माया है,*
*दुनिया की भीड़ में खोने लगो,*
*तुम खुद से दूर होने लगो,*
*तुम आँखें अपनी बंद करना,* 
*और अंतरमन की सुन लेना,*
*मुमकिन है हम तुम झूठ कहें,*
*पर अंतरमन सच बोलेगा..!!*